आधुनिकता की चकाचौंध में अस्तित्व खोता जा रहा पारम्परिक खेल 'कबड्डी'
शाहिद अली खान
खेल प्रशिक्षक शाहिद अली(लेखक)
प्राचीन काल से चली आ रही भारत का पारम्परिक खेल कबड्डी खेल आधुनिकता की चकाचौंध में अपना अस्तित्व धीरे-धीरे खोता जा रहा है। वर्तमान में कबड्डी गांवों में ही सीमित रह गई है। शहरों में अन्य खेल की संस्कृति तेजी से पनप रही है। अपने पारम्परिक खेल कबड्डी को बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता है।
कबड्डी का भारत में जन्म
कबड्डी खेल की उत्पत्ति भारत के दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु से हुई थी। यह तमिल लोगों का पारंपरिक खेल था। यह खेल पहले दक्षिण एशिया वा आसपास के अन्य एशियाई देशों में बहुत लोकप्रिय था। देश में कबड्डी अलग-अलग नामों से लोकप्रिय है। भारत के दक्षिणी भागों में इस खेल को चेडुगुडु या हू-तू-तू कहा जाता है। पूर्वी भारत में इसे प्यार से हादुदु (पुरुषों के लिए) और किट-किट (महिलाओं के लिए) कहा जाता है। उत्तर भारत में इस खेल को कबड्डी के नाम से जाना जाता है। समझा जाता है कि यह खेल मूलतः भारत का आविष्कार है, जिसका प्राचीन नाम था- 'चतुरंग '; जो भारत से अरब होते हुए यूरोप गया और फिर 15/16वीं सदी में तो पूरे संसार में लोकप्रिय और प्रसिद्ध हो गया।
यही खेल आज के युग में अपने अस्तित्व को खोता जा रहा है इसका कारण यह है की कबड्डी को भूलकर लोगों का ध्यान अन्य खेलों पर काफी है जो की आधुनिक युग में सबसे अधिक प्रभावी माना जाता है अपने प्राचीन खेल को बचाने के लिए तथा अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए इस प्राचीन खेल कबड्डी को पुनः अपने जीवन में लोगों को लाने की आवश्यकता है जिससे जो हमारा प्राचीन भारतीय खेल कबड्डी पूरे विश्व में सदैव के लिए प्रसिद्ध रहे।