प्रभाकर कसौधन

देवीपाटन धाम स्थित मधुरिमा हॉल में चल रहे धार्मिक कथा महोत्सव के तृतीय दिवस पर कथा व्यास पंडित ऋषिदेव शास्त्री महाराज ने श्रद्धालुओं को ध्रुव एवं प्रह्लाद चरित्र के माध्यम से गहन आध्यात्मिक संदेश दिए। उन्होंने कहा कि माता ही बच्चे के संस्कारों की प्रथम गुरु होती है, जो उसके संपूर्ण जीवन की दिशा तय करती है। उन्होंने कहा, “ध्रुव को उसकी माता सुनीति ने आत्मबल और भक्ति का मार्ग दिखाया, वहीं प्रह्लाद की माता के संस्कारों ने उसे भक्त शिरोमणि बना दिया। यही कारण रहा कि प्रह्लाद की सच्ची भक्ति से भगवान नरसिंह प्रकट हुए।कथा के अगले प्रसंग में समुद्र मंथन की गाथा सुनाते हुए उन्होंने बताया कि जब देवताओं और दैत्यों ने मंथन किया तो सर्वप्रथम हलाहल विष निकला, जिसे भगवान शिव ने ग्रहण कर संपूर्ण सृष्टि की रक्षा की। पंडित जी ने कहा, “जिन्होंने अमृत पिया वे देव कहलाए, पर जिन्होंने विष को अपनाया, वे स्वयं महादेव बन गए।”इसके बाद भगवान विष्णु के 52 स्वरूपों के प्रकटोत्सव का भव्य वर्णन हुआ, जहां भक्तों ने दर्शन पूजन कर आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त की।
इस पर मुख्य अतिथि अशोक लाट ने सपरिवार सहभागिता की। उनके साथ विक्रम लाट एवं विकास लाट सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए।